एकदंत संकष्टी चतुर्थी महत्व:सर्वार्थ सिद्धि योग में करें गणेश पूजा
एकदंत संकष्टी चतुर्थी महत्व : हिंदू धर्म में भगवान गणेश का अत्यधिक महत्व है। उन्हें विघ्नहर्ता, बुद्धि और समृद्धि के देवता माना जाता है। गणेश चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी जैसे पर्व उनके भक्तों के लिए विशेष महत्ता रखते हैं। संकष्टी चतुर्थी प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है, जबकि गणेश भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को। इस वर्ष, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की तिथि को चतुर्थी कहते हैं। इस साल यह व्रत मई माह का अंतिम व्रत है।
इस वर्ष एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जो इसे और भी खास बनाता है। साथ ही पाताल की भद्रा का संयोग भी इस दिन को महत्वपूर्ण बना देता है। इन योगों में की गई पूजा विशेष फलदायी होती है। आइए जानते हैं कि एकदंत संकष्टी चतुर्थी कब है, पूजा का मुहूर्त और चंद्र अर्घ्य का समय क्या है?
किस दिन है एकदंत संकष्टी चतुर्थी 2024 : एकदंत संकष्टी चतुर्थी महत्व
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस बार 26 मई रविवार को शाम 06 बजकर 06 मिनट पर ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की शुरुआत होगी। यह तिथि 27 मई सोमवार को शाम 04 बजकर 53 मिनट पर खत्म होगी। संकष्टी चतुर्थी का व्रत 26 मई रविवार को रखा जाएगा क्योंकि चतुर्थी का चंद्रोदय उस दिन ही है। 27 मई को चंद्रोदय चतुर्थी तिथि के बाद पंचमी में हो रहा है। चतुर्थी तिथि में चंद्रोदय का महत्व है, इसलिए इस दिन व्रत रखना अधिक लाभकारी माना जाता है।
एकदंत संकष्टी चतुर्थी 2024 पूजा मुहूर्त
यदि आप 26 मई को एकदंत संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखते हैं तो आप गणेश जी की पूजा सूर्योदय के बाद कर सकते हैं। इस दिन 05:25 ए एम से लेकर 10:36 ए एम तक सर्वार्थ सिद्धि योग बना हुआ है। इस दौरान की गई पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है। इसके अलावा उस समय साध्य योग भी बना होगा, जो किसी भी कार्य की सिद्धि में सहायक होता है। सर्वार्थ सिद्धि योग में किया गया कार्य सफल होता है, इसलिए इस समय में गणेश जी की पूजा करना अत्यंत लाभकारी है।
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3 शुभ योग में है : एकदंत संकष्टी चतुर्थी महत्व
इस साल की एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन 3 शुभ योग बन रहे हैं। एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह में साध्य योग बना है, जो 08:31 ए एम तक रहेगा। उसके बाद से शुभ योग बन जाएगा। सर्वार्थ सिद्धि योग भी बना है, जो इस दिन की महत्ता को और बढ़ा देता है। इन तीनों योगों में की गई पूजा और व्रत विशेष फलदायी होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
एकदंत संकष्टी चतुर्थी 2024 अर्घ्य समय
संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने का विधान है। 26 मई को चंद्रोदय रात 10:12 पी एम पर होगा। इस समय पर आप चंद्रमा को अर्घ्य दे सकते हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बिना यह व्रत पूरा नहीं माना जाता है। चंद्रमा को अर्घ्य देने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी विघ्न दूर होते हैं।
व्रत और पूजा का महत्व
संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने और पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। विशेषकर इस दिन जो व्यक्ति विधिपूर्वक पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है।
पाताल की भद्रा का प्रभाव
इस साल की एकदंत संकष्टी चतुर्थी पर पाताल की भद्रा का प्रभाव भी रहेगा। पाताल की भद्रा का प्रभाव शुभ माना जाता है और इस समय पर किए गए कार्य सफल होते हैं। इसलिए इस दिन गणेश जी की पूजा और व्रत विशेष फलदायी होता है। भद्रा का समय 26 मई को दिन में रहेगा, इसलिए इस समय में की गई पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है।
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व्रत की विधि
एकदंत संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने की विधि बहुत ही सरल है। इस दिन प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और गणेश जी की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित कर विधिवत पूजा करें। पूजा के दौरान गणेश जी को मोदक, दूर्वा, लाल फूल और धूप-दीप अर्पित करें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करें। इस प्रकार से व्रत करने से भगवान गणेश सभी विघ्नों को हर लेते हैं और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
एकदंत संकष्टी चतुर्थी की कथा
संकष्टी चतुर्थी की कथा के अनुसार, एक बार देवताओं ने भगवान गणेश से प्रार्थना की कि वे उन्हें असुरों से बचाएं। भगवान गणेश ने उनकी प्रार्थना सुनकर असुरों का नाश किया और देवताओं को मुक्त किया। इसी कारण से इस दिन को संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखने और गणेश जी की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
एकदंत संकष्टी चतुर्थी पर विशेष अनुष्ठान
इस दिन विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। गणेश जी की प्रतिमा को स्नान कराकर उसे नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और विशेष प्रकार से सजाया जाता है। गणेश जी को 21 दूर्वा, 21 मोदक और 21 लाल फूल अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद गणेश जी की 108 बार परिक्रमा की जाती है। इस दिन व्रत करने वाले भक्त उपवास रखते हैं और केवल फलाहार करते हैं। शाम को चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करते हैं।
व्रत का महत्व और लाभ
संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। यह व्रत बुद्धि, समृद्धि और सफलता प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इस दिन गणेश जी की पूजा और व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। विशेषकर इस दिन व्रत करने वाले भक्तों को भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
गणेश जी की पूजा विधि
गणेश जी की पूजा के लिए प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद गणेश जी की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित करें। पूजा के दौरान गणेश जी को मोदक, दूर्वा, लाल फूल और धूप-दीप अर्पित करें। गणेश जी की आरती करें और उनके मंत्रों का जाप करें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करें। इस प्रकार से व्रत करने से भगवान गणेश सभी विघ्नों को हर लेते हैं और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
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व्रत के दौरान क्या करें और क्या न करें
संकष्टी चतुर्थी के व्रत के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और मन को शुद्ध रखना चाहिए। व्रत के दौरान किसी प्रकार का तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए और केवल सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए। व्रत के दौरान अधिक से अधिक समय भगवान गणेश की आराधना में बिताना चाहिए और उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए। इस दिन किसी प्रकार का झूठ या छल-कपट नहीं करना चाहिए और मन को शांत और शुद्ध रखना चाहिए।
चंद्रमा को अर्घ्य देने का महत्व
संकष्टी चतुर्थी के व्रत का समापन चंद्रमा को अर्घ्य देने से होता है। चंद्रमा को अर्घ्य देने से मन की शांति मिलती है और सभी कष्ट दूर होते हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र में जल भरकर उसमें चावल, अक्षत और फूल डालें। इसके बाद चंद्रमा को देखते हुए इस जल को अर्घ्य दें। चंद्रमा को अर्घ्य देने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी विघ्न दूर होते हैं।
सर्वार्थ सिद्धि योग और साध्य योग का महत्व : एकदंत संकष्टी चतुर्थी महत्व
इस साल की एकदंत संकष्टी चतुर्थी पर सर्वार्थ सिद्धि योग और साध्य योग का विशेष संयोग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग में किया गया कोई भी कार्य सफल होता है और व्यक्ति को अपने सभी कार्यों में सफलता मिलती है। साध्य योग में किए गए कार्य भी सफल होते हैं और इस समय में की गई पूजा विशेष फलदायी होती है। इसलिए इस दिन गणेश जी की पूजा और व्रत करना अत्यंत लाभकारी होता है।
व्रत की तैयारी
संकष्टी चतुर्थी के व्रत की तैयारी एक दिन पहले से ही करनी चाहिए। व्रत के दिन प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और गणेश जी की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वलित करें। पूजा के लिए मोदक, दूर्वा, लाल फूल और धूप-दीप की व्यवस्था करें। गणेश जी की आरती करें और उनके मंत्रों का जाप करें। शाम को चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करें। इस प्रकार से व्रत करने से भगवान गणेश सभी विघ्नों को हर लेते हैं और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
निष्कर्ष : एकदंत संकष्टी चतुर्थी महत्व
एकदंत संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश के भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस वर्ष की एकदंत संकष्टी चतुर्थी पर सर्वार्थ सिद्धि योग, साध्य योग और पाताल की भद्रा का विशेष संयोग बन रहा है, जो इस दिन की महत्ता को और बढ़ा देता है। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करना विशेष फलदायी होता है। इस प्रकार से व्रत करने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
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