भगवान शिव की कहानियाँ
भगवान शिव की कहानियाँ : सनातन संस्कृति देवों के देव महादेव कहा जाता है. इसके अलावा हिंदू धर्म को मानने वाले उन्हें भगवान शंकर भी कहते हैं. उनके महेश, रुद्र, गंगाधर, भोलेनाथ, गिरीश जैसे कई नाम हैं. तंत्र साधना करने वाले भगवान शंकर को भैरव भी कहते हैं. भगवान शंकर को सौम्य और रौद्र दोनों रूपों में पूजा जाता है. भगवान शिव को त्रिदेवों में संहार का देवता माना जाता है. वैसे तो भगवान शिव को हमेशा कल्याणकारी माना जाता है, भगवान शिव सुर और असुर दोनों को समान दृष्टि से देखते हैं. इसलिए कथा-कहानयिों में कई राक्षसों के उनकी कठिन तपस्या करने की जानकारियां मिलती हैं. भगवान शिव के कई अनन्य भक्तों में एक लंकाधिपति रावण भी हुए. कई राक्षसों ने उन्हें अपने तप से प्रसन्न कर मनचाहा वरदान पाया. सवाल ये उठता है कि भगवान शिव के भक्तों की कई कहानियां सुनी-सुनाई जाती हैं,
कौन थे महादेव के पहले शिष्य?
महादेव के पहले शिष्य के बारे में कई प्राचीन पौराणिक कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, ब्रह्मा के शिष्य सनत कुमार थे, जिन्होंने महादेव को गुरु मानकर उनके उपासना की थी। यह शिष्यता भाव उनके आदिकाल से ही चली आ रही है और यह भावना साधकों और भक्तों के बीच परंपरागत रूप से प्रचलित है। भगवान शिव के पहले शिष्यों की जानकारी पुराणों में मिलती है. पुराणों के मुताबिक, भगवान शिव के सबसे पहले शिष्यों में सप्तऋषियों की गिनती होती है. मान्यता है कि सप्तऋषियों ने भगवान शिव के ज्ञान का प्रचार धरती पर किया था. इसी की वजह से विभिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई. ये भी माना जाता है कि भगवान शिव ने ही गुरु शिष्य परंपरा की शुरआत की थी. शिव के सबसे पहले शिष्यों में बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, महेंद्र, प्राचेतस मनु, सहस्राक्ष और भारद्वाज शामिल थे.
क्या शिव और शंकर एक हैं?
शिव और शंकर दोनों ही हिंदू धर्म के महादेव के रूप में प्रसिद्ध हैं, लेकिन ये दो अलग-अलग परंपराओं में विभाजित होते हैं। शंकर एक तांडव नृत्य करने वाले, त्रिशूल और धारी दामरू धारण करने वाले महादेव के रूप में पूजे जाते हैं, जबकि शिव विष्णु और ब्रह्मा के साथ त्रिमूर्ति के रूप में जाने जाते हैं। यह विभाजन विभिन्न संप्रदायों और पंथों के अनुसार होता है। ज्यादातर सनातन परंपरा के अनुयायी शिव और शंकर को एक ही मानते हैं. हालांकि,
ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति
इस प्रकाश पुंज से ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति हुई. जब ब्रह्माजी ने पूछा कि आप कौन हैं तो पुंज से आवाज आई कि मैं शिव हूं. इस पर ब्रह्मा जी ने प्रकाश पुंज से साकार रूप लेने को कहा. फिर उस प्रकाश पुंज से शंकर की उत्पत्ति हुई. इस आधार पर कहा जा सकता है कि शिव और शंकर एक ही शक्ति के अंश हैा, लेकिन दोनों अलग हैं. दोनों फर्क इतना है कि शिव प्रकाश पुंज स्वरूप हैं और अब हम उनकी शिवलिंग के रूप में पूजी करते हैं, जबकि शंकर सशरीर देव स्वरूप हैं.
किसका ध्यान करते हैं भगवान शंकर
कुछ पुराणों में भगवान शंकर को शिव इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे निराकार शिव के समान है. निराकार शिव को ही शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है. ज्यादातर जगहों पर भगवान शंकर को योगी के रूप में दिखाया जाता है. भगवान शंकर खुद आंखें बंद किए ध्यान मुद्रा में बैठे हैं. कभी सोचा है कि आखिर देवाधिदेव महादेव किसका ध्यान कर रहे हैं. तो इसको लेकर अलग-अलग कथाएं हैं. रामचरित मानस में भगवान शिव और श्रीराम को एकदूसरे का उपासक बताया गया है. शिवपुराण में खुद भगवान शिव माता पार्वती को बताते हैं कि वह श्रीराम का ध्यान करते हैं. वहीं, कुछ पुराणों में बताया जाता है कि भगवान शंकर शिव का ध्यान करते रहते हैं. कुछ जगहों पर भगवान शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए भी चित्रित किया गया है. इससे भी साफ होता है कि शिव और शंकर दो अलग सत्ताएं हैं.
कैसे हुई देवाधि देव की उत्पत्ति?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवाधि देव की उत्पत्ति विविध गतिविधियों के माध्यम से हुई। एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के मध्य में समुद्र मंथन का काम हुआ था, तो धन्वंतरि के साथ ही देवाधि देव भी समुद्र से उत्पन्न हुए थे। उन्हें अमृत का प्राप्त होने का अधिकार मिला था, जो असुरों को प्राप्त होने से रोका गया था। इस प्रकार, वे देवताओं के महादेव के रूप में माने जाते हैं और उन्हें पूजा जाता है।
शिवजी की कितनी पत्नियां हुईं
ज्यादातर जगहों पर भगवान शिव की दो पत्नियों का ही उल्लेख मिलता है. इनमें पहली देवी सती और दूसरी माता पार्वती. वहीं, अगर हिंदू पौराणिक कथाओं की मानें तो महादेव ने एक दो नहीं बल्कि चार विवाह किए थे. उनके सभी विवाह आदिशक्ति से ही हुए थे. भगवान शिव का पहला विवाह माता सती के साथ हुआ. वह प्रजापति दक्ष की बेटी थीं. माता सती के पिता ने जब भगवान शिव का अपमान किया तो उन्होंने यज्ञकुंड में खुद को भस्म कर अपने प्राणों की आहुति दे दी. इसके बाद उन्होंने हिमालय की बेटी पार्वती के रूप में जन्म लिया. माता पार्वती के रूप में आदिशक्ति ने भगवान शिव से दूसरा विवाह किया. धर्मग्रंथों में भगवान शिव की तीसरी पत्नी देवी उमा को बताया जाता है. वहीं, उनकी चौथी पत्नी मां महाकाली को बताया गया है.
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