बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ धाम : देश के चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम में लाखों की संख्या में हर साल श्रद्धालु देश विदेश से पहुंचते हैं. इसे भू वैकुंठ भी कहा जाता है. उत्तराखंड के चमोली जिले में सरस्वती और विष्णुगंगा के संगम जो विष्णुप्रयाग के बाद अलकनंदा कहलाती है, के दक्षिण तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वतों के बीच बद्रीनाथ धाम स्थित है. पुराणों में बदरी नामक वृक्षों की झाड़ियों वाले बद्रीकावन का विस्तार 12 योजन लंबा और 3 योजन चौड़ा बताया गया है
लेकिन वर्तमान बद्रीनाथ धाम का क्षेत्र 3 मील लंबी व एक मील चौड़ी संकरी घाटी है. मान्यता है कि भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.पौराणिक साहित्य में इसे एक अनादि तीर्थ माना गया है और इसके माहात्म्य का प्राचीन विवरण पाराशर संहिता में पाया गया है. स्कंदपुराण के अनुसार, इसे चारों युगों में विभिन्न नामों से जाना जाता रहा है, जैसे सतयुग में मुक्तिप्रदा, त्रेतायुग में योगसिद्धा, द्वापरयुग में विशाला और कलयुग में बद्रीकाश्रम अथवा बद्रीनाथ.
बद्रीनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर हैं मतभेद
बद्रीनाथ मंदिर के संबंध में पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसका निर्माण ब्रह्मादि देवताओं के अनुरोध पर भगवान विश्वकर्मा ने कराया था. वहीं माना जाता है कि कालांतर में राजा पुरुरवा ने इसका निर्माण कराया. निर्माण के विषय में पौराणिक संकल्पना चाहे जो भी हो किंतु नागर शैली के निर्देशक इस मंदिर का निर्माण 15वीं सदी के आसपास का बताते हैं.
जनश्रुति के अनुसार, इसका निर्माण रामानुज संप्रदाय के स्वामी वरदाचार्य की प्रेरणा से तत्कालीन गढ़नरेश भोगदत्त के द्वारा कराया गया था और इसका स्वर्णमंडप इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था. 1631 में यहां आने वाले ईसाई पादरी अजवैरदौ के द्वारा लिखे गए अपने यात्रावृतांत में कहा गया कि यहां पर मध्यम ऊंचाई के भद्दे के तीन भवन हैं, इनमें से जो सबसे अच्छा है उसकी वेदपीठिका पर बद्रीनाथ की एक सोने की जैसी एक पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई है.
बौद्ध मठों की शैली में मंदिर में हैं तीन भाग
बद्रीनाथ धाम में प्रवेश करने पर आपको मंदिर के तीन भाग दिख जायेंगे. बौद्ध मठों की शंकुनुमा शैली में बना बद्रीनाथ धाम तीन भागों में विभाजित है और वह हैं- गर्भगृह, मंडप और सिंहद्वार, जो आकर्षण का केंद्र हैं. मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल बताते हैं कि गर्भगृह में भगवान बद्रीनाथ जी की मूर्ति शालिग्राम शिला से बनी है. मंदिर में भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं.
6 माह भगवान की पूजा बद्रीनाथ धाम में देवताओं के साथ ही की जाती है और शीतकाल के दौरान उद्धव और कुबेर की डोली पांडुकेश्वर स्थित योग ध्यान मंदिर और जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में शंकराचार्य की गद्दी विराजित होती है, जहां भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं. माना जाता है कि तिब्बती लुटेरों से बचाने के लिए पुजारियों ने अलकनंदा के नारदकुंड में भगवान विष्णु की मूर्ति को डाल दिया था, जिसे बाद में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा वहां से निकलवा कर यहां पर पुनः स्थापित करवाया गया. यहां के मुख्य पुजारी निबुदरी संप्रदाय के दक्षिण भारत के पुजारी होते हैं, जिन्हें ‘रावल’ कहते हैं.
जान लीजिए दूरी
दिल्ली से 520 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है.
देहरादून के जॉलीग्रांट एयरपोर्ट से 317 किलोमीटर की दूरी है.
ऋषिकेश से मोटरमार्ग से 300 किलोमीटर, श्रीनगर से 190 किमी, कोटद्वार से 327 किलोमीटर की दूरी है. एनएच 7 पर बद्रीनाथ धाम स्थित है.
प्राचीन मंदिर अतीत की धारा
भारत की उत्तराखंड राज्य में, हिमालय की गोद में सुरम्य अन्नपूर्णा पर्वतीय क्षेत्र में बसा है बद्रीनाथ धाम। यहाँ का महत्व धर्मिक, ऐतिहासिक, और पर्यटन संबंधी है। बद्रीनाथ धाम का नाम सुनते ही हिन्दू धर्म के अनेकों पाठक इस धाम की श्रद्धार्थ यात्रा के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं।बद्रीनाथ धाम का मुख्य आकर्षण है उसका प्राचीन मंदिर, जिसे 9वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने निर्मित किया था। यह मंदिर हिमालयी वास्तुशिल्प का शानदार उदाहरण है और उसके दर्शन करने के लिए दर्शकों की लगातार भीड़ लगी रहती है।
वास्तविकता का पर्दाफाश भक्ति का विचार
बद्रीनाथ धाम के आस-पास कई रहस्यमय स्थल हैं, जो इसकी वास्तविकता को और भी रोचक बनाते हैं। यहाँ के प्राचीन पहाड़ियों में छिपी हुई गुफाएं और पुरानी कहानियाँ दर्शकों को खींचती हैं।बद्रीनाथ धाम की यात्रा एक आध्यात्मिक संवाद का माध्यम भी है। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को ध्यान, ध्यान और साधना का अवसर मिलता है, जो उन्हें अपने आत्मिक अभिविकास की ओर आग्रहित करता है।
सौंदर्य की जगह आशीर्वाद और धन्यवाद
बद्रीनाथ धाम के आसपास का पर्यटन स्थल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहाँ के वन्यजीवन, बर्फीले पर्वतों की चोटियाँ, और शांति भरी वातावरण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।बद्रीनाथ धाम की यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि यह एक आत्मिक पुनर्जागरण का भी संदेश लेकर आती है। यहाँ आने वाले लोग आशीर्वाद और शांति के साथ घर लौटते हैं, धन्यवाद देते हुए उस दिव्य अनुभव के लिए।