जून का पहला प्रदोष व्रत : जान लें तारीख, शुभ समय, महत्व
जून का पहला प्रदोष व्रत : ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाएगा। हिंदू धर्म में हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। इस प्रकार, हर महीने में दो प्रदोष व्रत होते हैं – एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में। प्रदोष व्रत का महत्व उस दिन के अनुसार बढ़ जाता है जिस दिन यह पड़ता है। उदाहरण के लिए, मंगलवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत भौम प्रदोष कहलाता है, जबकि सोमवार को पड़ने वाला सोम प्रदोष कहलाता है। इसी प्रकार, शुक्रवार का शुक्र प्रदोष और शनिवार का शनि प्रदोष होता है। जून का पहला प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ेगा, इसीलिए इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा। आइए जानते हैं जून के पहले प्रदोष व्रत की तारीख, शुभ समय और इसका महत्व।
किस दिन है जून का पहला प्रदोष व्रत
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 4 जून मंगलवार को 12:18 ए एम पर प्रारंभ होगी और यह तिथि 4 जून को ही रात 10:01 पी एम पर समाप्त होगी। इस प्रकार, जून का पहला प्रदोष व्रत 4 जून को रखा जाएगा। यह ज्येष्ठ माह का भी पहला प्रदोष व्रत होगा और इस दिन की पूजा का प्रदोष काल 4 जून की शाम को होगा। इस दिन भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से की जाएगी।
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2 घंटे ही है प्रदोष पूजा का मुहूर्त : जून का पहला प्रदोष व्रत
जून के पहले प्रदोष व्रत की पूजा का मुहूर्त केवल 2 घंटे 1 मिनट तक का होगा। भौम प्रदोष व्रत वाले दिन शिव पूजा का मुहूर्त शाम 07:16 पी एम से रात 09:18 पी एम तक है। इस अवधि के दौरान, भक्तों को भगवान शिव की पूजा संपन्न कर लेनी चाहिए। प्रदोष व्रत की पूजा का महत्व प्रदोष काल में ही होता है, जो सूर्यास्त और रात्रि के बीच की अवधि होती है। इस समय भगवान शिव की आराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
जून के पहले प्रदोष व्रत पर बनने वाले योग
4 जून को प्रदोष व्रत के दिन दो विशेष योग बन रहे हैं – शोभन योग और सर्वार्थ सिद्धि योग। शोभन योग प्रात:काल से सुबह 06:12 ए एम तक रहेगा, उसके बाद अतिगण्ड योग बनेगा। इसके अलावा, सर्वार्थ सिद्धि योग रात 10:35 पी एम से अगले दिन 5 जून को 05:23 ए एम तक रहेगा। इस व्रत के दिन भरणी नक्षत्र प्रात:काल से रात 10:35 पी एम तक रहेगा, उसके बाद कृत्तिका नक्षत्र होगा। इन योगों का शुभ समय व्रत रखने वालों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है और इससे उनके द्वारा किए गए पूजा और अनुष्ठानों का प्रभाव बढ़ जाता है।
व्रत के दिन शिववास
भौम प्रदोष व्रत वाले दिन शिववास भोजन में होगा, जो सुबह से रात 10:01 पी एम तक रहेगा। इसके बाद शिववास श्मशान में होगा। यह मान्यता है कि प्रदोष और शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और इन दिनों में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व होता है। रुद्राभिषेक के लिए शिववास का होना अनिवार्य माना जाता है क्योंकि इससे भगवान शिव को प्रसन्न करने में मदद मिलती है।
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व्रत का महत्व
हिंदू धर्म में अत्यधिक है। जो लोग इस व्रत को रखकर भगवान शिव की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शिव जी के आशीर्वाद से संतान, सुख, धन, दौलत, आरोग्य आदि सब की प्राप्ति हो सकती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं और उसके जीवन में सुख-शांति का वास होता है। प्रदोष व्रत का पालन करने से न केवल भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।
भौम प्रदोष व्रत का विशेष महत्व
भौम प्रदोष व्रत, जो मंगलवार को पड़ता है, का विशेष महत्व है। यह व्रत ग्रहों की अनुकूलता के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। मंगल ग्रह को ज्योतिष में उग्र ग्रह माना जाता है और इससे संबंधित समस्याओं के निवारण के लिए भौम प्रदोष व्रत रखा जाता है। इसे करने से व्यक्ति को मंगल ग्रह से संबंधित दोषों से मुक्ति मिलती है और जीवन में उन्नति होती है। भौम प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ मंगल ग्रह की शांति के लिए भी उपाय किए जाते हैं।
प्रदोष व्रत की विधि
इस दिन व्रती को प्रातःकाल उठकर स्नानादि से शुद्ध होकर भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए। उपवास रखना चाहिए और दिन भर भजन-कीर्तन और धार्मिक कार्यों में समय बिताना चाहिए। शाम के समय, प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा की जाती है। पूजा में गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि का प्रयोग किया जाता है। शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद शिवपुराण का पाठ और भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना चाहिए। आरती के बाद प्रसाद वितरण करना चाहिए।
व्रत की कथा
प्रदोष व्रत की कथा का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि एक समय में एक गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था। ब्राह्मण अत्यंत धर्मनिष्ठ था और भगवान शिव का अनन्य भक्त था। एक दिन वह ब्राह्मण बहुत ही संकट में पड़ गया और उसके पास खाने को कुछ नहीं था। उसने भगवान शिव की आराधना की और प्रदोष व्रत का पालन किया। भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उसे धन-धान्य से संपन्न कर दिया। इस प्रकार प्रदोष व्रत रखने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है।
व्रत और स्वास्थ्य
धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी होता है। व्रत रखने से शरीर को विश्राम मिलता है और पाचन तंत्र की सफाई होती है। उपवास के दौरान लिए गए फलाहार और विशेष आहार से शरीर को ऊर्जा मिलती है और यह विषैले तत्वों को बाहर निकालने में सहायक होता है। इस प्रकार प्रदोष व्रत का पालन शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है।
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प्रदोष व्रत का सामाजिक महत्व
प्रदोष व्रत का पालन समाज में भी विशेष महत्व रखता है। यह व्रत सामूहिक रूप से मनाया जाता है और इससे समाज में एकता और सहयोग की भावना बढ़ती है। मंदिरों में सामूहिक पूजा और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है, जिससे सामाजिक समरसता और धार्मिक चेतना का विकास होता है। इस प्रकार प्रदोष व्रत न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण होता है।
वैज्ञानिक पहलू : जून का पहला प्रदोष व्रत
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत के दौरान उपवास रखने से शरीर में डिटॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया तेज हो जाती है और यह शरीर के लिए लाभकारी होता है। इसके अलावा, प्रदोष व्रत के दौरान की जाने वाली पूजा-अर्चना से मानसिक शांति और सुकून मिलता है। इससे तनाव कम होता है और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। इस प्रकार प्रदोष व्रत का पालन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होता है।
आध्यात्मिक महत्व
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रदोष व्रत का पालन व्यक्ति की आत्मा को शुद्ध करता है और उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। भगवान शिव की आराधना और उपवास से व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है और उसे ईश्वर के निकट जाने का अवसर मिलता है। प्रदोष व्रत का पालन करने से व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्य का बोध होता है और वह आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होता है।
निष्कर्ष : जून का पहला प्रदोष व्रत
हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। जून के पहले भौम प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है, जो भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि और आरोग्य लेकर आता है। इस व्रत का पालन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी लाभकारी होता है। भक्तजन इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करते हैं। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
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